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एक छोटे से कमरे से शुरु हुई वेबसाइट कैसे बन गई अरबों डॉलर की कंपनी, पढ़िए फ्लिपकार्ट के कामयाबी की कहानी ।

  फ्लिपकार्ट भारत की एक प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनी है जिसपर हम ऑनलाइन कुछ भी खरीद सकते हैं वह भी घर बैठे ।  फ्लिपकार्ट आज के समय में देश की सबसे सफल कंपनियों में से एक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कंपनी की शुरुआत एक कमरे के फ्लैट से हुई थी। जब कोई एक छोटे से कमरे से अपने बिजनेस की शुरुआत करता है तो वह शायद ही यह सोचता हो कि उसका बिजनेस इतने कम निवेश के बाद भी एक समय अरबों की कंपनी बन जाएगी। फ्लिपकार्ट का नाम भी कुछ उन्ही स्टार्टअप में से है जिनकी शुरुआत महज ही कुछ रुपयों से हुई थी लेकिन आज उस कंपनी का टर्नओवर अरबों में है।  तो आज हम Story behind the Success के माध्यम से आपको बताने जा रहें हैं कैसे सचिन और बिन्नी बसंल ने  फ्लिपकार्ट को नई बुलंदियों पर पहुंचाया। Flipkart के शुरुआत की कहानी Flipkart भारत की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों में से एक है। Flipkart की शुरुआत 2007 में Sachin Bansal और Binny Bansal द्वारा बंगलोर में की गई थी। दोनों मित्र IIT दिल्ली के पूर्व छात्र थे और उन्हें इंजीनियरिंग में दिलचस्पी थी। Flipkart की शुरुआत एक ऑनलाइन पुस्तकालय के रूप में हुई थी , जिसे वे अमेज़न क
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बीच रास्ते में रोककर टैक्सी ड्राइवर ने किया झगड़ा तो खड़ी कर दी कैब कंपनी, पढ़िए 'ओला' के बनने की रोचक कहानी

    दोस्तों अगर आज के समय में आपको शहर में किसी एक जगह से दूसरी जगह जाना हो और आपके पास गाड़ी न हो तो आपके दिमाग मे सबसे पहले एक ही नाम आता है 'ओला' । IIT बाम्बें से पास आउट भाविश माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में अच्छी खासी नौकरी कर रहे थे लेकिन ऐसा क्या उनके दिमाग में आया कि उन्होंने नौकरी छोड़ कर खुद की कंपनी खड़ी कर दी। तो आज हम बात करने जा रहे हैं ओला के संस्थापक भाविश अग्रवाल के बारे में जिन्होंने लाखों लोगों के एक जगह से दूसरे जगह जाने की समस्या को दूर किया। भाविश का प्रारंभिक जीवन भाविश का जन्म 25 अगस्त 1985 को पंजाब के लुधियाना शहर में हुआ था । उनके पिता नरेश कुमार और माता उषा अग्रवाल साधारण परिवार से तालुक रखते थे । भाविश ने मुंबई IIT से साइंस में बीटेक की डिग्री हासिल की और माइक्रोसाफ्ट कंपनी में रिसर्च एनालिस्ट के रुप में काम करने लगे । कंपनी में वह काफी अच्छा कर रहे थे लेकिन इस सुरक्षित नौकरी से वह जरा भी खुश नही थे क्योंकि उनके अंदर खुद कुछ अच्छा करने का जुनून सवार था। वह एक बिजनेस मैन बनना चाहते थे लेकिन माइक्रोसाफ्ट नाम उन्हें रोका हुआ था और वह चाह कर भी इसे छोड़ नही

जानिए कैसे दो दोस्तों ने एक छोटे से फूडलेट से Zomato को बना दिया फेमस फूड डिलीवरी ब्रांड ।

ऑनलाइन फूड आजकल फैशन बन चुका है हर कोई ऑनलाइन ऑर्डर कर शांति से घर बैठ कर खाना चाहता है क्योंकि इंसान होटल में जाकर इंतजार करने से अच्छा समझता है कि उसका खाना घर में मिल जाए। ऑनलाइन फूड डिलिवरी वेबसाइट जोमेटो इस समय हर किसी के जुबान पर है। क्या आप जानना चाहते हैं कि कैसे Zomato ने ऑनलाइन फूड डिलिवरी सिस्टम को इतना आसान बनाया जिससे कुछ ही मिनटों में लोग अपने घर में खाने की डिलिवरी रिसीव कर पाते हैं। जोमेटो कंपनी की शुरुआत कैसे हुई जोमेटो कंपनी की शुरुआत 2010 में की गई थी और इसे शुरु करने का श्रेय दीपेंदर गोयल को जाता है। ऑनलाइन फूड डिलीवरी करने वाली कंपनी जोमेटो आज 24 देशों के 10 हजार शहरों में लोगों को खाना डिलिवर कर रही है। यह दुनिया के सबसे बड़ी फूड डिलिवरी कंपनियों में से एक है। दीपेंदर पंजाब के एक मध्यमवर्गीय परिवार से तालुक रखते हैं उनका मन पढ़ाई में नही लगता था यही वजह थी की वह कक्षा 6वीं और 11वीं में फेल हो गए थे। हालांकि उन्हें ऐहसास हुआ की पढ़ाई से ही कुछ बना जा सकता है। इसीलिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और IIT में सलेक्ट हो गए । IIT से 2006 में पासआउट होने के बाद दीपेंदर ब्रेन ए

भारत की आजादी के लिए धन लुटाने वाला स्वतंत्रता सेनानी, जिसने अपने बिजनेस के माध्यम से भारतीयता की नई मिसाल कायम की

बिड़ला ग्रुप भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक संस्थानों में से एक है जिसने कई उद्यमों के माध्यम से सफलता हासिल की है।  बिड़ला ग्रुप की सफलता का एक मुख्य कारण व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करना है। उन्होंने अपने कारोबार को तेजी से विस्तारित किया और विभिन्न क्षेत्रों में नए उद्यमों के साथ नए बाजार खोजे हैं। इससे उन्हें अधिक मुनाफे कमाने का मौका मिला और उनकी कंपनियों को नए उच्च स्तर के विकास तैयार करने में मदद मिली। घनश्याम दास बिड़ला बिड़ला समूह के संस्थापक थे। आज हम story behind the success के माध्यम से घनश्याम दास बिड़ला के बारे में बात करने जा रहे हैं। घनश्याम दास बिड़ला घनश्याम दास बिड़ला भारतीय स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया । उनका जन्म 10 अप्रैल 1894 को राजस्थान के झूंझुनू जिले के पिलानी ग्राम में हुआ था। वह एक मारवाड़ी परिवार से तालुक रखते थे और उनके दादा शिव नारायण बिड़ला ने मारवाड़ी समुदाय के पारंपरिक व्यवसाय साहूकारिता (ब्याज पर पैसे देना) से हटकर अलग क्षेत्रों में बिजनेस का विकास किया। घनश्याम बिड़ला के पिता बलदेव दास बिड़ला ने अफीम के बिजनेस

चाय सुट्टा बार! कैसे एक आम लड़के ने खड़ा दिया करोड़ों का साम्राज्य, पढ़िए चाय से जुड़ी रोचक कहानी

भारत में चाय सुट्टा बार की स्थापना की कहानी एक आम व्यक्ति के सपनों को पूरा करने का शानदार उदाहरण है। जैसा की सब जानते हैं कि भारत में पानी के बाद चाय सबसे ज्यादा पिया जाने वाला पदार्थ है। चाय की इतनी ज्यादा  डिमांड को देखते हुए ही अनुभव दुबे ने अपने दो अन्य दोस्तों के साथ मिल कर चाय सुट्टा बार की स्थापना की और कुछ ही सालों  में यह एक बड़ा ब्रांड बन गया। अनुभव दुबे का शुरूआती जीवन काफी गरीबी में बीता था। उनके पिता एक किराना दुकानदार थे और वह अपने पिता की दुकान में काम करते थे। लेकिन उन्होंने कभी नहीं हार मानी और हमेशा उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने का सपना देखा। उन्होंने अपनी मेहनत और अभ्यास से सफलता हासिल की और अपने जीवन में अग्रणी भूमिका निभाई।  प्रारंभिक जीवन अनुभव का जन्म 1996 में हुआ था और उनका होम टाउन मध्यप्रदेश में रीवा है। अनुभव दुबे की कक्षा 8 तक की पढ़ाई रीवा के एक गांव से हुई इसके बाद उनके पिता ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए इंदौर भेज दिया।  वहां पर उनकी दोस्ती आनंद नायक से हुई जो उनके साथ पढ़ते थे। आनंद ने कुछ साल बाद ही पढ़ाई छोड़ दिया और अपने किसी रिश्तेदार के साथ मिलक

रिकार्ड्स किए हुए कैसेट बेंचकर कैसे एक लड़का बन गया भारतीय संगीत का सरताज , पढ़िए उनसे जुड़ी कई रहस्यमयी कहानियां

गुलशन कुमार भारतीय फिल्म उद्योग का एक लोकप्रिय नाम है जिसने अपनी दूरदृष्टि की मदद  से संगीत की दुनिया को नई ऊंचाईयां दी। आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे बिजनेस मैन के बारे में जिसने रिकार्ड्स किए हुए सस्ते कैसेट बेंच कर ऐसा बड़ा मुकाम हासिल किया जिसे हासिल करने में इंसान को सदियों लग जाते हैं। प्रारंभिक जीवन गुलशन कुमार का जन्म दिल्ली में एक पंजाबी अरोड़ा परिवार में हुआ था। उनका नाम गुलशन दुआ था और उनके पिता दिल्ली के दरियागंज बाजार में एक फ्रूट जूस का कार्नर चलाते थे। गुलशन कुमार भी उनके साथ काम में हाथ बटांते थे। इस काम में गुलशन कुमार का मन ज्यादा दिन तक नही लगा और वह कुछ नया करने की सोचने लगे। वह संगीत के शौकीन थे और उन दिनों  संगीत ऑडियो कैसेट बहुत मंहगे बिकते थे उनकी क्वालिटी भी अच्छी नही होती थी।  इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी दुकान के पास में ही एक दुकान किराए पर लिया और गाने रिकार्ड्स किए हुए सस्ते ऑडियो कैसेट बेचना शुरु कर दिया। वह गाने के कैसेट खरीद कर लाते थे और फिर उसी को रिकार्ड्स कर अपने नाम से बेचते थे। यह एक सामान्य शुरुआत थी लेकिन कुछ ही दिनों में लोगों को उन

इन्वर्टर मैन कुंवर सचदेवा: कैसे घर-घर पेन बेचने वाला लड़का बन गया इन्वर्टर मैन, पढ़िए रोचक किस्सा

  इन्वर्टर मैन कुंवर सचदेवा लगन और इच्छा शक्ति इंसान के पास ऐसे दो औजार हैं जिनके बल पर वह दुनिया की किसी भी चीज को पा सकता है। पूरे दृढ़ इच्छा और लगन के साथ कोई भी काम किया जाए तो सफल होने से कोई नही रोक सकता। इसके अलावा धैर्य इंसान को विपरीत परिस्थितियों में भी टिके रहने का साहस देता है। परिस्थितियां चाहे जैसी हो लगातार आगे बढ़ता रहना चाहिए। कुछ ऐसी ही कहानी है Su-Kam Inverter के जनक कुंवर सचदेवा की। जिन्होंने आर्थिक अभाव को कभी भी सफलता की राह में आड़े नही आने दिया। आज यह कंपनी दुनिया के करीब 70 से ज्यादा देशों में कारोबार कर रही है । कंपनी का टर्नओवर करीब 29 बिलियन डॉलर है। तो आप जान ही गए होगें की आज हम बात करने वाले हैं कुंवर सचदेवा की। प्रारंभिक जीवन कुंवर सचदेवा का जन्म 1962 में दिल्ली के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके तीन भाई हैं और पिता रेलवे में सेक्शन ऑफिसर थे। उस समय सेक्शन ऑफिसर कोई बड़ी पोस्ट नही हुआ करती थी। इस लिहाज से घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी। यही कारण था कि कुंवर सचदेवा जब पांचवी कक्षा में थे तब उनके पिता ने उन्हें प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल म