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"अनिल अग्रवाल: संघर्ष से सफलता तक का सफर, कैसे बने वेदांता ग्रुप के अरबपति?"

 


एक सफल व्यवसायी की कहानी हमेशा लोगों को प्रेरणा देती है। सफलता का यह सफर जितना अधिक कठिन होता है, उसकी कहानी उतनी ही प्रेरणादायक लगती है। भारतीय उद्योग में भी एक ऐसा ही नाम है, जिसकी सफलता का सफर आसान नहीं रहा। यह व्यक्ति एक-दो नहीं, बल्कि पूरे 9 बार बिजनेस में असफल हुआ। तनाव इतना बढ़ा कि अवसाद का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। आज वे 1.5 लाख करोड़ रुपये की कंपनी का नेतृत्व कर रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं वेदांता ग्रुप के मालिक अनिल अग्रवाल की।

गरीबी में बीता बचपन
24 जनवरी 1954 को बिहार के पटना के एक छोटे से गाँव में अग्रवाल परिवार में एक लड़के का जन्म हुआ, जिसका नाम अनिल रखा गया। परिवार में चार बच्चों की परवरिश करना उनके गरीब माता-पिता के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था। मात्र 500 रुपये की मासिक आय में पूरे परिवार का गुजारा होता था। अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अनिल अग्रवाल ने कॉलेज जाने के बजाय अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने का फैसला किया।

पटना में जन्मे और पले-बढ़े अनिल अग्रवाल ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मिलर हायर सेकेंडरी स्कूल से की, लेकिन मात्र 15 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने के लिए स्कूल छोड़ दिया। इसके बाद वे पहले पुणे और फिर मुंबई चले गए। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने स्क्रैप डीलर के रूप में की। इसके बाद अपनी पहली कंपनी की स्थापना की, जिससे उन्हें अच्छी कमाई हुई।

छोटी सी दुकान से की शुरुआत
अपने पिता के साथ काम करने के अनुभव के बाद, अनिल अग्रवाल ने नौकरी करने के बजाय खुद का छोटा व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने मुंबई के भोईवाड़ा मेटल मार्केट में किराए पर एक छोटी सी दुकान ली। उस समय उनके पास न तो ज्यादा पैसे थे और न ही अनुभव, लेकिन उनके पास अपने सपनों को पूरा करने का जुनून और कड़ी मेहनत करने की लगन थी।


 हाल ही में अनिल अग्रवाल को कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में "सपनों का पीछा कैसे करें" विषय पर छात्रों को संबोधित करने का अवसर मिला। पटना के एक मारवाड़ी परिवार में जन्मे अनिल अग्रवाल ने बचपन से ही अपने व्यवसाय को बड़ा बनाने का सपना देखा था। आज माइनिंग टाइकून के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध अनिल अग्रवाल ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया, "20 से 30 साल की उम्र के बीच मैंने काफी संघर्ष किया। इस दौरान मैं अपने व्यवसाय में 9 बार असफल हुआ, लेकिन पहली सफलता मिलने के बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद मैं अपने लिए लगातार नए रास्ते बनाता गया।"

बिहार से खाली हाथ मुंबई पहुंचे अनिल अग्रवाल
अनिल अग्रवाल बिहार के पटना में रहते थे, लेकिन महज 20 साल की उम्र में उन्होंने बिहार छोड़कर मुंबई का रुख किया। उस समय उनके पास केवल एक टिफिन बॉक्स था। मुंबई पहुंचने पर उन्होंने कई चीजें पहली बार देखीं, जैसे डबल डेकर बस और पीली टैक्सी। यहां पहुंचने के बाद उन्होंने कड़ी मेहनत शुरू की और 1970 में कबाड़ के व्यवसाय से अपने कारोबारी सफर की शुरुआत की। इस पहले व्यवसाय ने उन्हें अच्छी कमाई का मौका दिया और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

इस दुकान पर वे मेटल का कबाड़ बेचते थे। 1970 के दशक में उन्होंने मेटल की धातुओं की ट्रेडिंग शुरू की। वे विभिन्न राज्यों की कबाड़ कंपनियों से सामान खरीदकर मुंबई में बेचते थे। उनकी मेहनत रंग लाई, और जल्द ही उन्हें अपने काम में सफलता मिलने लगी। अपनी सफलता के साथ उन्होंने आगे बढ़ते हुए अपनी पहली कंपनी की स्थापना भी कर दी।

आज अनिल अग्रवाल देश के शीर्ष उद्योगपतियों में गिने जाते हैं और धातु, तेल, एवं गैस के कारोबार से जुड़े हुए हैं। 1970 में उन्होंने स्क्रैप मेटल का व्यवसाय शुरू किया। 1976 में शैमशर स्टर्लिंग कॉर्पोरेशन का अधिग्रहण किया और 1990 में कॉपर रिफाइनिंग के क्षेत्र में कदम रखा। उनकी कंपनी स्टरलाइट इंडस्ट्रीज देश की पहली निजी कंपनी बनी, जिसने कॉपर रिफाइनिंग का काम शुरू किया।

 

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