अगर हौसला और कुछ कर दिखाने का जज्बा हो, तो कोई भी मुश्किलें रुकावट नहीं बन सकतीं। इसका बेहतरीन उदाहरण हैं चेन्नई की पैट्रिसिया नारायण। जब जिंदगी ने उन्हें कड़े इम्तिहान दिए, तो उन्होंने उन्हें पार कर अव्वल स्थान पर पहुँचने का करिश्मा किया। दो बच्चों की जिम्मेदारी उठाने के लिए उन्होंने महज 50 पैसे में चाय बेचना शुरू किया, और आज उनकी रोज की कमाई 2 लाख रुपये से अधिक है। अब वे चेन्नई में एक सफल बिजनेसवुमेन के रूप में जानी जाती हैं और करोड़ों का कारोबार संभालती हैं।
पैट्रिसिया ने अपने जीवन में हर प्रकार के संघर्ष का सामना किया, लेकिन कभी भी हार नहीं मानी। परिवार की परेशानियों और समाज के तानों से उबरते हुए, उन्होंने अपनी मंजिल को पाया। जो पैट्रिसिया कभी 50 पैसे में चाय बेचा करती थीं, आज वही रोजाना 2 लाख रुपये कमाती हैं। जो पैट्रिसिया कभी रिक्शे से सफर करती थीं, उनके पास आज कई लग्जरी कारों का काफिला है। यह सबकुछ उन्होंने अपनी मेहनत और संकल्प से अकेले ही हासिल किया है।
शुरुआत का जीवन
पैट्रिसिया का जन्म तमिलनाडु के नागरकोल में एक पारंपरिक क्रिश्चियन परिवार में हुआ। 17 साल की उम्र में, उन्होंने अपने परिवार के विरोध के बावजूद एक ब्राह्मण युवक, नारायण से शादी कर ली। लेकिन एक साल बाद ही उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया, और दो बच्चों के साथ वे सड़क पर आ गईं। इस मुश्किल समय में उनके पिता ने उनका साथ दिया और उन्हें घर में वापस ले लिया। हालांकि, पैट्रिसिया का हौसला कभी भी कमजोर नहीं पड़ा। उन्होंने अपने दम पर कुछ करने की ठानी और अपने जीवन को नया मोड़ देने का संकल्प लिया।
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संघर्ष की शुरुआत
पिता के घर लौटने के बाद पैट्रिसिया ने अपने संघर्षों की शुरुआत की। कुकिंग में उनकी रुचि बचपन से ही थी। एक दिन, अपनी मां से पैसे उधार लेकर उन्होंने अचार और जैम बनाना शुरू किया। उनकी कुकिंग की गुणवत्ता को देखकर उनका काम चल पड़ा, और कुछ पैसे जमा करने के बाद उन्होंने मरीना बीच पर एक खोखा खोल लिया। पहले दिन तो केवल कॉफी बिकी, लेकिन दूसरे दिन की कमाई 700 रुपये हुई। इसके बाद, सफलता का सिलसिला जारी रहा, और 1982 से 2003 तक उन्होंने अपने परिवार के लिए पर्याप्त पैसे जमा कर लिए।
कैंटीन के काम से मिली पहचान
उनके खाने की गुणवत्ता को देखकर, स्लम क्लियरिंग बोर्ड के चेयरमैन ने उन्हें अपनी कैंटीन चलाने की जिम्मेदारी दी। इसके बाद, पैट्रिसिया ने चेन्नई में स्थित बोर्ड के हर ऑफिस में कैंटीन का काम संभाल लिया। जैसे-जैसे पैसे आए, 1998 में वे संगीता रेस्तरां बिजनेस में पार्टनर बन गईं। फिर उनके जीवन में सबसे बड़ा अवसर आया, जब उन्होंने खुद का बिजनेस शुरू किया।
बेटे के साथ बनाई रेस्तरां चेन
2006 में पैट्रिसिया ने अपने बेटे के साथ मिलकर अपनी बेटी की याद में पहला रेस्तरां, संदीपा (Sandheepha Restaurant) शुरू किया। इसके बाद उनका नाम चेन्नई के प्रमुख रेस्तरां में शुमार होने लगा, और उन्होंने एक के बाद एक कई रेस्तरां चेन खोल दी। आज, चेन्नई में उनके कई रेस्तरां हैं और उनकी रोज़ की कमाई करीब 2 लाख रुपये है। अब उनका कारोबार 20 करोड़ रुपये से भी अधिक का हो चुका है। 2004 में एक दुर्घटना में अपनी बेटी को खोने के बाद, पैट्रिसिया ने एंबुलेंस सर्विस भी शुरू की। 2010 में उन्हें फिक्की वुमेन इंटरप्रेन्योर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
आज उनके साथ 200 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं। 2010 में पैट्रिसिया को फिक्की एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। पैट्रिसिया एक प्रेरणा हैं उन लोगों के लिए जो कठिन परिस्थितियों का सामना कर हार मान बैठते हैं। उनकी कहानी यह सिखाती है कि परिस्थितियों से घबराने की बजाय, उनका डटकर मुकाबला करना चाहिए।
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