वेलुमणि को पढ़ाई का बहुत शौक था, इसलिए उन्होंने नौकरी करते हुए अपनी शिक्षा जारी रखी और अंततः पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्हें भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में लैब असिस्टेंट के पद पर नौकरी मिली। यहां उनकी शादी सुमति वेलुमणि से हुई, जो बैंक में सरकारी नौकरी करती थीं। अपने पीएचडी के दौरान उन्हें यह समझ में आ गया था कि थायरॉइड के क्षेत्र में टेस्टिंग करके लोग काफी पैसे कमा रहे हैं, तो फिर वह क्यों नहीं कमा सकते थे!
यह भी पढ़ें- अभिषेक लोढ़ा की प्रेरक कहानी: 20 करोड़ के बिजनेस से 1 लाख करोड़ के साम्राज्य तक का सफर
थायरोकेयर टेक्नोलॉजीज लिमिटेड की स्थापना
14 साल तक नौकरी करने के बाद, साल 1995 में एक रात, अपनी बेचैनियों को शांत करते हुए, उन्होंने रात के 2 बजे अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने 1 लाख रुपए जमा प्रोविडेंट फंड के पैसे से मुंबई में एक टेस्टिंग लैब स्थापित किया। थायरॉइड के लैब का काम बढ़ाते हुए, उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में पहले सिर्फ सैंपल लैब खोले, और इनकी टेस्टिंग मुंबई के सेंट्रल सेंटर में की जाने लगी। शुरुआत में केवल एक या दो टेस्ट आते थे, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उनका लैब प्रसिद्ध होता गया। शुरुआत में वह सैलरी भी नहीं लेते थे, और लैब से होने वाली कमाई का सारा पैसा कंपनी में ही निवेश कर देते थे। इसमें उनकी पत्नी ने पूरा साथ दिया।
वेलुमणि ने १९९५ में स्थापित लैब का नाम रखा थायरोकेयर टेक्नोलॉजीज लिमिटेड, जो एक डायग्नोस्टिक और प्रिवेंटिव हेल्थकेयर कंपनी थी, जो बाद में उद्योग में भारत की प्रमुख कंपनियों में से एक बन गई। समाज के सभी वर्गों को सस्ती और सुलभ डायग्नोस्टिक सेवाएँ प्रदान करने का दृष्टिकोण रखते हुए, वेलुमणि ने भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में क्रांति लाने का मिशन शुरू किया। थायरोकेयर के शुरुआती साल चुनौतियों और असफलताओं से भरे थे, क्योंकि वेलुमणि को अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बाजार में कंपनी को स्थापित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। हालांकि, गुणवत्ता, नवाचार और ग्राहक सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने थायरोकेयर को अन्य प्रतिस्पर्धियों से अलग किया और इसे सफलता की ओर अग्रसर किया।
वेलुमणि के नेतृत्व में, थायरोकेयर ने डायग्नोस्टिक्स के "हब और स्पोक" मॉडल को अपनाया, संचालन को सुव्यवस्थित किया और देश भर में अपनी पहुंच को विस्तारित किया। स्वचालन, प्रौद्योगिकी अपनाने और लागत दक्षता पर कंपनी के फोकस ने उसे सस्ती कीमतों पर डायग्नोस्टिक परीक्षणों की एक विस्तृत श्रृंखला पेश करने में सक्षम बनाया, जिससे लाखों लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हो गईं। वेलुमणि की उद्यमशीलता और नवाचार ने थायरोकेयर को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंचाया, और यह भारत तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एक बहु-मिलियन डॉलर का उद्यम बन गया। स्थापित खिलाड़ियों और विनियामक बाधाओं के बावजूद, वह अपनी खोज में अडिग रहे और थायरोकेयर को सफलता की ओर अग्रसर करते रहे।
आज, थायरोकेयर वेलुमणि की दूरदर्शिता और नेतृत्व का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो डायग्नोस्टिक सेवाओं की एक व्यापक श्रृंखला प्रदान करता है और दुनिया भर में लाखों ग्राहकों की सेवा करता है। वेलुमणि की सफलता की कहानी ने उन्हें व्यवसाय समुदाय से प्रशंसा और मान्यता दिलाई, और वह महत्वाकांक्षी उद्यमियों के लिए एक आदर्श बन गए हैं।
कंपनी का मार्केट कैप ३३०० करोड़ रुपए
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आज कंपनी का मार्केट कैप 3300 करोड़ रुपए से अधिक है। इतनी बड़ी कंपनी के फाउंडर होने के बावजूद, वह बहुत साधारण और सरल जीवन जीते हैं। आज उनकी कंपनी पूरे देश में प्रसिद्ध है। 2011 में नई दिल्ली की कंपनी सीएक्स-पार्टनर्स ने थायरोकेयर में 30% स्टेक खरीद लिया, जिसकी कीमत लगभग 188 करोड़ रुपए थी, और कंपनी की कुल वैल्यू 600 करोड़ रुपए बनी। इसके बाद एक के बाद एक अन्य निवेशकों ने भी कंपनी में अपने पैसे लगाना शुरू किया।
आज की तारीख में थायरोकेयर सिर्फ करोड़ों की नहीं, बल्कि अरबों की कंपनी बन चुकी है, और डॉ. अरोक्यास्वामी वेलुमनी की संपत्ति लगभग 1200 करोड़ रुपए से भी अधिक है।
Comments
Post a Comment